नाटक-एकाँकी >> राम कथा राम कथागोपाल उपाध्याय
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हमारे देश की सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक परंपराएं महान रही हैं और जन-जन के लिए अनुकरणीय। राम-कथा हमारे गौरवमय अतीत के एक विशेष कालखंड का दर्पण होते हुए भी सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक गरिमा से युक्त रही है। वाल्मीकि कृत रामायण इसी कारण देशकाल की सीमा से परे आज की परिस्थितियों में और भी सामायिक प्रतीत होती है।
हिंदी के सुप्रतिष्ठित उपन्यासकार एवं नाटककार गोपाल उपाध्याय ने समसामयिक संदर्भों, सांस्कृतिक पुनर्जागरण के युग में उपजे प्रसंगों तथा राजनीतिक समाधानों को ध्यान में रखकर मूल कथा के आधार पर युक्तिसंगत रूप से राम-कथा का यह नाट्य रूपांतर प्रस्तुत किया है। संपूर्ण राम-कथा पर यह पहला इतना प्रामाणिक एवं रोचक गद्य नाटक है जो अपने सरल एवं प्रांजल भाषा-सौष्ठव के कारण दशहरा आदि पर्वों पर हर वर्ष अभिनीत किए जाने वाले रामलीला नाटकों की भांति सहज ही गांवों, कस्बों एवं नगरों में रंगमंच पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
देश की नई पीढ़ी को अपनी गौरवमयी परंपरा से परिचित कराने की दृष्टि से यह युगों तक अमर रहने वाला महान कृतित्व है। राष्ट्रीय एकता, देश की अखंडता, सामाजिक समानता, सुरक्षा, सौमनस्य, भाईचारा, जन जन के प्रति सौहाद्र एवं आदरभाव, उच्च नैतिक आचरण, अन्याय एवं शोषण का प्रतिकार आदि ‘राम-कथा’ में व्याप्त अगाध प्रेम की भांति ही उजागर हैं। कथानायक राम एवं नायिका सीता युग-युग तक मानव मात्र के लिए अनुकरणीय चरित्र रहे हैं और रहेंगे।
मानव-धर्म की गाथा राम-कथा विश्व की प्राचीनतम रचना है जो मनुष्य को मनुष्य से बांटती नहीं मिलाती है, इसीलिए यह किसी संप्रदाय-विशेष अथवा किसी एक धर्म के लिए नहीं, वरन विश्व-मानव-धर्म के लिए सहजग्राह्य एवं मान्य है। आधुनिक समाज के लिए यह विग्रह से परे शांति एवं सौहार्द का संदेह देती है और अन्याय एवं असत्य पर न्याय एवं सत्य की विजय की गाथा बनकर छा जाती है।
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